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दर्श करि आज आनंद मैं पाइयो। मानु चिंतामणी रंक कर आइयो। जयति अजरामरा बुद्ध शिव शंकरा। क्रोध मद मोह दल काम माया हरा।। अष्ट गुण पाइया लोक त्रय धाइया। सिद्ध पद पाय के नाहि जग आईया।। नाथ अरजी सुनो दःख मेरो हनो। तारिये तार अब दास लखि आपनो।। और कछु ना चहूँ जोलों शिव ना लहूँ। तोलों निज सेव मुझ दीजिये यह कहूँ।।
दोहा उदकादिक वसु द्रव्य ले, कंचन थाल भराय। मन वच तन पूजा करूं, “चन्द'' मुक्ति
बकसाय॥
सोरठा जो पूजै सागार, लाभलब्धिधर जिनवरा। सो सुर नर पदधार, शिव थल जावै दुखहरा।।
भोग लब्धि पूजा (अडिल्ल) भोग विषै विधि अंतराय जो है सही। ताहि नाश जिन भोग लब्धि सुखदा लही। मो मन तिष्ठो आय करूं यहां स्थापना। आह्वानन विधि ठानि जान हित आपना।। ऊँ ह्रीं अर्हन् श्री परम ब्रह्म अनन्त भोग लब्धि धारक जिन अत्रावतरावतार संवौष्ट आह्वाननम्। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
सन्धिकरणम्।
अष्टक (सोरठा) शीतल निरमल नीर, भर मणि झारी धार दे। हरो जनम मृत पीर, भोग लब्धिधर जिन जजू।।
ॐ ह्रीं भोग लब्धि धारक जिनेभ्यो जलं निर्वपामीति स्वाहा।।।।
चन्दन केसर सार, कनक कटोरी में भरूं। भव आताप निवार, भोग लब्धिधर जिन जजू।।
ऊँ ह्रीं भोग लब्धि धारक जिनेभ्यो चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।।2।
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