________________
तन्दुल श्वेत अनूप, स्वर्ण थाल भर लाइयो। देहु अक्षय पद भूप, दान लब्धिधर जिन जजों।।
ऊँ ह्रीं दानलब्धिधारकजिनेभ्यो अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा॥3॥
कुंद गुलाब मंगाय, सुर तरु सुमन सुहावने। बाण मनोज हराय, दान लब्धिधर जिन जजों।।
ऊँ ह्रीं दानलब्धिधारकजिनेभ्यो पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
षटरस युक्त बनाय, नेवज बहु विधि पाइया। जजू क्षुधा हर राय, दान लब्धिधर जिन जजों।।
ऊँ ह्रीं दानलब्धिधारकजिनेभ्यो नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।।6।।
माणक दीप सुहाय, स्वर्ण रकाबी धारिया। मिथ्या-ध्वांत नशाय, दान लब्धिधर जिन जजों।।
ऊँ ह्रीं दानलब्धिधारकजिनेभ्यो दीपं निर्वपामीति स्वाहा॥7॥
धूप सुगंध बनाय, धूपायन में खेइयो। आठों कर्म जराय, दान लब्धिधर जिन जजों।।
ऊँ ह्रीं दानलब्धिधारकजिनेभ्यो धूपं निर्वपामीति स्वाहा।।7।
श्रीफल लोंग अनार, पुंगी पिस्तादि सबें। शिवफल दाय निहार, दान लब्धिधर जिन जजों।।
ऊँ ह्रीं दानलब्धिधारकजिनेभ्यो फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जल गंधादिक सार, वसु विधि अर्घ बनाइया। आवागमन निवार, दान लब्धिधर जिन जजों।।
ऊँ ह्रीं दानलब्धिधारकजिनेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥9॥
657