________________
उत्तम आकिंचन्य धर्म पूजा
(अडिल्ल) आकिंचन वृष नगन अवस्था है सही। तामें दुविध परिग्रह त्याग सु धुनि कही।। धन धान्यादिक बाह्य राग अन्तर गिनो। इनते रहित सु नगन धरम जजि अघ हनो।। ॐ ह्रीं श्री उत्तमआकिंचन्यधर्मांग अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्।
ॐ ह्रीं श्री उत्तमआकिंचन्यधर्मांग अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमआकिंचन्यधर्मांग अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
अथाष्टकम् (त्रिभंगी छन्द) जल लाया नीका सुरतारिणी का उज्ज्वल ठीका धारकरी।
अति गंध सुहाई निर्मल भाई हर्ष बढ़ाई पाप हरी।। ले कनक सु झारी भक्ति उचारी भव दुःखहारी हाथ लई।
आकिंचन धर्मा जजि शुभ कर्मा दे फल परमा थान सही।। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमाकिंचन्यधर्मांगाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
शुभ चन्दन आनी घसि संगपानी गन्ध सुहानी हाथ धरि।
अलि ऊपर आधै लुभावै शुद्ध करावे नेह भरी। ऐसी गंध लावो हरष बढाओ ज्ञान जगावो मोक्ष मही।
आकिंचन धर्मा जजि शुभ कर्मा दे फल परमा थान सही।। ॐ ह्रीं श्री उत्तमाकिंचन्यधर्मांगाय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
शुभ अक्षत लाया विमल सुहायो खंडे बिन भाया सुखदाई। मुक्ताफल जानौ अधिक सुहानो गंध सु थानौ गह भाई।। ऐसो ले अक्षत जनमन हर्षत भक्ति करत ते शीश नवाई।
आकिंचन धर्मा जजि शुभकर्मा दे फल परमा थान सही।। ॐ ह्रीं श्री उत्तमाकिंचन्यधर्मांगाय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
639