________________
जयमाला (दोहा) त्याग तरण तारण सही, भव सागर में नाव। त्याग बने नहिं देव पै, मनुज लह्यो यह दाव।।
(बेसरी छन्द) त्याग जोग सबही संसारा, पुद्गल द्रव्य त्याग निरवारा।
त्याग रतन कंचन भंडारा, जो त्यागै सो गुरू हमारा।। हाथी घोटक रथ सब त्यागा, साधु आप आतम रस लागा।
मात तात तैं नेह निवारा, जो त्यागै सो गुरू हमारा।। त्याग राज बन्धन दुःखदाई, नारि पुत्र” नेह तुड़ाई। अनुभव रस मारग विस्तारा, जो त्यागै सो गुररू हमारा।। आरत भाव त्यागि दुःखदाई, त्याग योग्य सब मान बड़ाई। रौद्र ध्यान त्यागै अधिकारा, जो त्यागै सो गुरू हमारा।। क्रोध मान छल लोभ गमावै, सो उत्कृष्टा त्याग कहावै। हास्य शोक भय भव निवारा, जो त्यागै सो गुरू हमारा।। मद मत्सर को त्याग कराया, त्याग अरति रति बिसन बताया।
राग द्वेष का तजै प्रसारा, जो त्यागै सो गुरू हमारा।। पर में ममत त्यागि के भाई, निज परिणति में प्रीति लगाई। त्याग पाप परिणति की धारा, जो त्यागै सो गुरू हमारा।। जगते विरचि आप रस भीना, तिनने शिवमग नीकै चीना। त्याग जगत दुःख सिर भारा, जो त्यागै सो गुरू हमारा।।
(सोरठा) त्याग धरम तप सार, भव भव शरणों मैं गहों। जजौ त्याग भवतार, ता प्रसाद” शिव लहों।।
ऊँ ह्रीं उत्तमत्यागधर्मांगाय पूर्णाध्यं निर्वपामीति स्वाहा। ।।इति उत्तम त्यागधर्म पूजा संपूर्ण।
638