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दिढ़ आसन तनतैं जानों, काय कष्टतैं जिय सुख जानों। तप ही लगे पाप को धोवै, तपतैं विनय भार उर होवै ।। धरमी काय तनी सुश्रूषा, तप ही करवावै अध-लूसा। शास्त्र पठन है तप सुखकारा, यातैं होवै वपुतैं न्यारा तप ही मन इन्दिय वश आनै, ध्यान धरत वस कर्म हराने।
यातैं तप लागत्त है प्यारा, शुद्ध भवतैं है अघ छारा।।
(दोहा)
तप मेटत भव तापको, शान्त भाव दिढ़ होय । हरै भरम देवै धरम, सो तप पूजौं लोय।। ऊँ ह्रीं उत्तमतपोधर्मांगाय पूर्णाघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
॥इति तप धर्म पूजा।।
उत्तम त्याग धर्म पूजा (चौपाई)
त्याग धरम में ममत न कोई, त्याग धरम सुरतरु अवलोंई। वांछा त्याग धरम में नाहीं, सो वृष थापि जजों इस ठाहीं।। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमत्यागधर्मांग! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमत्यागधर्मांग ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमत्यागधर्मांग! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
अथाष्टकम् (मणुयणानद की चाल)
नीर शुभ क्षीरदधि सार सो लाइजी। साधु चित तुल्य निर्मल सु मन भायजी।। कनक झारी भरी भक्ति मन लाइयो। त्याग धर्म जजौं स्वर्ग शिवदाइयो || ऊँ ह्रीं श्री उत्तमत्यागधर्मांगाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
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