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चौबिस वारस पारना चौई, सब दिन अड़तालीस गिनोई। तपजुसदरशनविधि श्रुतजानो, यह अनशन तप जजि सुखदानो।। ऊँ ह्रीं सुदर्शन-तपोधाँगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।1।।
एक बरष एक वार करंता, उत्तम तप जिनवाणि भणंता। ताके भेद बहुत हैं भाई, यह अनशन तप जजि सुखदाई।। ऊँ ह्रीं उत्कृष्ट-तपोधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।12।
भूख प्रमाण थकी लघु खइये, सो अवमोदर तप बरनईये। यह तपविधि भूधर पवि माना, सोमैं जजौं अरघ कर आना।। ऊँ ह्रीं अवमौदर्य तपोधर्मांगाय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।13॥
आज इसीविधि भोजन पइये, तो हम लेय नतर थिर रहिये।
ऐसी विधि प्रतिज्ञा ठानै, सो तप जजौ कर्म गिरि भानै।। ऊँ ह्रीं व्रतपरिसंख्यान-तपोधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।14।
त्यागै इक दुंइत्रय रस भाई, चार पांच षट् तजिनहिं खाई।
ऐसो रस परित्याग सु ठाने, सोतप जजौं कर्म गिरि भान।। ॐ ह्रीं रसपरित्याग-तपोधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।15।।
आशन दिढ़ भू सोधि करावै, थिरता भजै सु तन न हिलावै।
शय्यासन तप या विधि ठानै, सो तप जजौं कर्म गिरि भान।। ऊँ ह्रीं श्रीविधिक्तशय्याशन-तपोधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥16॥
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