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इमि जानि पूजौं अर्घ लेकर, तसु फल शिव जाइये।। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमतपोधर्मांगाय अध्यं निर्वामीति स्वाहा।।
(बेसरी छन्द) जिन गुण सम्पति हैं तप मीता, त्रेसठ वास जिन गीता। भिन भिन तिथियन में सुखदाई, यह तप अनशन जजिगुणगाई।। ॐ ह्रीं श्री जिनगुण सम्पत्तितपधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥2॥
कर्म क्षपण तपके उपवासा, इकसौ अड़तालिस जिन भासा। भिन भिन तिथियन में सुखदाई, यह तप अनशन जजि गुण गाई।।
ऊँ ह्रीं कर्मक्षपणतपोधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।3।
(जोगी रासा) सिंह निक्रीडत तप दिन सौ, अरु जान सतत्तरि भाई। तिनमें इक सौ जानि पैतालिस, वास कहै सुखदाई।। बाकी बत्तिस जानि पारणा यह विधि जिन धनि माहीं।
यह अनशन तप जान जजौं मैं अर्घ लेय हित ठांहीं।। ऊँ ह्रीं सिंहनिष्क्रीडित तपोधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।4।
भद्र सर्वतो तप के शुभ दिन एक सैकड़ा जानों। हैं उपवास पचत्तर अद्भुत पारण पचविस मानों।। इसकी विधि भिनभिन जिनभासी सोतप अनशन गाया। __ अघ लेय मैं पूजौं मन वच काय भक्ति युत भाया। ऊँ ह्रीं सर्वतोभद्र-तपोधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।5।।
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