________________
तप सुर वंछे पै नाहिं पाय, तातै सुर पूर्जे तप सुभाय।
ऐसो तप चरू ले भक्ति लाय, मैं पूजौं तसु फल क्षुधा जाय। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमतपोधर्मांगाय क्षुधारोगविनाश्नाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
तप कल्पवृक्ष वांछित सुदेई, तप दीप अनोपम तम हरेई।
ता तपको दीपक रतन लाय, मैं पूजों तसु फल ज्ञान पाय।। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमतपोधर्मांगाय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
तपही तें तीर्थंकर जु होय, तपही तै शिव लहि कर्म खोय।
ऐसो तपको शुभ धूप लाय, मैं पूजौं विधि ईधन जराय।। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमतपोधर्मांगाय दुष्टाष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
तप पूजत जगकरि पूज्य होय, तप औषधि दखगद हरन जोय। ता तपको बहुविधि फल मंगाय, मैं पूजौं तसु फल शिवलहाय।। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमतपोधर्मांगाय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
तपते उर करुणा भाव होय, तप तपैं जगत में पूज्य सोय।
ता तप को उत्तम अर्घ लाय, मैं पूजौं पद अनरघ लहाय।। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमतपोधर्मांगाय अनध्यपदप्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
प्रत्येकाध्याणि
(गीता छन्द) तप सार जग में भेद बारह भव उदधिको को नाव है। __ पाप दाहक तप करन हित साधु मन उच्छाव हैं। तपदेय सुखदुख दूरि करि है, और कहँ लग गाइये,
628