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कही वस्तु यह यातें छोटी है सही। यातें है यह बड़ी अपेक्षा इमि कही।। याको नाम प्रतिति सत्य सो जानिये। ताको भी है जजौं भक्ति उर आनिये।।
ॐ ह्रीं श्री अपेक्षासत्यधर्मांगायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।11।
जो नरपति को पुत्र ताहि राजा कहै। सो नैगमनय जानि सत्य तातें यहै।। यही सत्य व्योहार जिनेश्वर धुनि कही। मैं जजिहौं कर भक्ति नाय मस्तक सही।।
ऊँ ह्रीं श्री व्यवहार-सत्यधर्मांगायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥12॥
शक्ति इन्द्रमें इसी लोक उलटा करै। सो तो लोक अनादि उलटि कैसे धरें।। पै यह शक्ति अपेक्षा वचन प्रमान है। यह सम्भाव सत्य जजौं स्थिति आन है।
ऊँ ह्रीं श्री सम्भावनासत्यधर्मांगायायं निर्वपामीति स्वाहा।।13।
जीव अनन्त अनादि नजर आवै नहीं। द्रव्य अमूर्ती पांच नरक सुरकी मही।। ये नहि दीखें नयन सूत्र सौं जानिये। भवा सत्य सो जानि जजों मन आनिये।।
ऊँ ह्रीं श्री भावसत्यधर्मांगायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥14॥
किसी वस्तु की उपमा जाको लाइये। ज्यों दानी नर देख कल्पद्रुम गाइये।। थाको उपमा सत्य नाम जानौं सही। सो मैं पूजौं भक्ति नाय मस्तक मही।।
ऊँ ह्रीं श्री उपमा-सत्यधर्मांगायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।15।।
इत्यादिक बहु भेद सत्य के जानिये। कहे देव जिनराय अपनी वानिये।। सो मैं मन वच काय शुद्ध थुति गायजी। पूजौ सत्य सुधर्म अरथ कर लाइजी।।
ॐ ह्रीं श्री सत्यधर्मांगाय महाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
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