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(गीता छन्द) जा देश में जिस वस्तु को तिस मानिए सो सति सही। जिम भात को गुजरात मालवदेश में चोखा कही।।
करनाटमें कूलू कहैं द्राविड़ में चौरु बखानिये। इमजानि जनपद सत्यको जजि हर्ष उर में आनिये।। ऊँ ह्रीं श्री जनपद-सत्यधर्मांगायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।6।।
(अडिल्ल छन्द) बह नर ताको कहैंतिसो ही मानिये। रंक नाम लक्ष्मीधर जाही बखानिये।। तो यह रूढी नाम सत्य संवृत कही। या नयतें सत जानि जजौं सत वृष सही।।
ऊँ ह्रीं श्री संवृतसत्यधर्मांगायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।7।
काहु नर आकार तथा पशु के सही। चित्र काष्ठ में थापि नाम नर पशु कही।। यह थापन सत भेद शास्त्र में गाइयो। ताकों सत वृष जानि जजौं मन लाइयो।।
ऊँ ह्रीं श्री स्थापनसत्यधर्मांगायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।8।।
जाको जगमें नाम प्रसिद्ध बखानिये। सोई ताको नाम सत्य सो मानिये।। नाम सत्य सो जानि वानि जिन इम कही। ताको मन वच काय जजौं शुभ सुखमही।।
ऊँ ह्रीं श्री नामसत्यधर्मांगायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।9।
__पीत श्याम अरु रक्त श्वेत गोरा सही। रूपवान इत्यादि अंग बहुतें कही।। रूप सत्य सो जानि कह्यों जिनवानि जी। ऐसी सत्य सु जानि जजौं सुखदायजी।।
ऊँ ह्रीं रूपधर्मांगायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥10॥
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