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त्रैलोक्य के तम-तोम को, करता विदूरित सोहता।6। बाधारहित शाश्वत निराकुल, अन्यतम सुख सम्पदा।
नाथ के चरणाविन्दों, के समागम में सदा।। प्राप्त करते भक्तजन हैं, भक्ति के आधार से। आश्चर्य क्या यदि पार हों, संसार पारावार से।7। हे शान्तिनाथ जिनेन्द्र तव, चरणारविन्दों की कृपा। भव दुःख से सन्तप्त जनके, हेतु बन जाती प्रपा।।
दूर होते दुःख-दारुण, नाथ की शुभभक्ति से। ज्यो घनतिमिर है दूर होता, रविकिरण की शक्ति से।8। श्री शान्तिनाथ जिनेन्द्र के, इस संस्तवन को भाव से।
जो भव्यजन पढ़ते निरन्तर, हैं विनय से चाव से।। परिणाम उनके हों विमल, सब विघ्न बाधाएं टलें। कल्याण मंदिर के पथिक वे, मुक्ति के पथ पर चलें।9।
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