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________________ धूप अगर जा चंदन भीनी, गंध सहित निज कर में लीनी। कर्म दहन की अगनि जराई, आरजव भाव नमों शिरनाई।। ऊँ ह्रीं श्रीआर्जवधर्मांगाय दुष्टाष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। ले नरियल बादाम सुपारी, खारिक लौंग आदि हितकारी। सिद्ध लोक वांछा मन माही, आरजव धरम जजौं शिरनाई।। ॐ ह्रीं श्रीआर्जवधर्मांगाय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। जल चंदन अक्षत कामारी, चरु दीपक फल धुप विथारी। अर्घ लेय मनवचतन भाई, आरजव धरम जजौं शिरनाई। ऊँ ह्रीं श्रीआर्जवधर्मांगाय अनध्यपदप्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। प्रत्येकाध्याणि (बेसरी छन्द) गुण छयालीस जहां प्रभु तेरा, अष्टादश तहां दोष न हेरा। तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आजब वृष जजि शिवधावै।। ऊँ ह्रीं श्री छियालीसगुणसहितजिनचरणमनार्जवधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।। मुक्त जीव अरहत थूति कीजै, मन वच कूटिल भाव तजि दीजै। तिनपद सरल भाव शिर नावै, तो आर्जव वृष जजि शिवधावें।। ऊँ ह्रीं श्री मुक्तजीव अरहन्तपदनमनार्जवधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।2।। कर्म काटि शिवलोक सिधारें, सिद्ध सुदेव हरौ अध सारे। तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिवधावै।। ऊँ ह्रीं श्री सिद्धपदनमनार्जवधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।3। 604
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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