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थावर के पन भेद पाप फलते बने। सूक्षम बादर भेद दोय यों जिन भने।। इनको दुखमय जानि दया मन लाय है। सो ही उत्तम क्षमा जजौं शिर नाय है।।6।। ऊँ ह्रीं सूक्ष्मस्थूल पंचस्थावर परिरक्षणरूपोत्तम क्षमाधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
लट अरु जोंक गिंडोला इल्ली जानिये। कौडी शंख दु इन्द्रिय अति दुख थानिये।। इन पर करुणाभाव जती धारै सही। सो ही उत्तम क्षमा जजौं शिवकी मही।।7॥ ॐ ह्रीं द्वीन्द्रियजीव परिरक्षणरूपोत्तमक्षमाधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
चींटी कुंथा खटमल बीछू दुखमही। ते-इन्द्रिय परजाय पाय धुण आदि ही।। इनको दुखमय जानि मुनि करुणा धरै।। सो ही उत्तम क्षमा जजौं सब अघ जरै।।8।।
ऊँ ह्रीं त्रीन्द्रियजीव परिरक्षणरूपोत्तमक्षमाधर्मांगाय अध्यं निर्वामीति स्वाहा।
माखी मच्छर टीड़ी भंवरादिक सही। बर्र ततइया मकडी चतुरिन्द्रिय कही।। इनको दुखिया देखि मुनी करुणा धरैं। सो ही उत्तम क्षमा जजौं वविधि जरें।।9। ऊँ ह्रीं चतुरिन्द्रियजीव परिरक्षणरूपोत्तमक्षमाधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
इन्द्रिय पांचों होय, नहीं मन जो लहै। ते जिय जानि असैनी अघफल अति दहै।। इनको दुःख भरिपूर जानि करुणा धरें। सो ही उत्तम क्षमा जजौं शिवथल धरै।।10। ॐ ह्रीं असंज्ञीपंचेनिद्रयजीव परिरक्षणरूपोत्तमक्षमाधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
नरक जीव अति दुखी पापफलतें सही। छेदन भेदन पीर सहैं जात न कही।। इन पर करुणाभाव जती अति लाय हैं। सो ही उत्तम क्षमा जजौं सुखदाय हैं।।11॥ __ऊँ ह्रीं नारकीजीव परिरक्षणरूपोत्तमक्षमाधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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