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पीछे यथाशक्ति खरचावै, पूजन धरम उद्योत करावै।
(दोहा) इत्यादिक विधि सहित जो, धर्म करें दशसार। पावै सुख मन भावनो, अनुक्रम ले भव पार।।
ऊँ ह्रीं श्री दशलक्षणधर्मेभ्यः पूर्णाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
।।इति समुच्चय पूजा॥
उत्तम क्षमा धर्म पूजा
(अडिल्ल छन्द) जीव तिरस थावर जेते जग में सही, देव नरक नर पशु चारि गति की मही। तिन सब ऊपर दया भाव उर मांही जी, सो है उत्तम क्षमा थापी जजू याहिं जी।।
ऊँ ह्रीं उत्तमक्षमाधर्मांग अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्।
ऊँ ह्रीं उत्तमक्षमाधर्मांग अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ॐ ह्रीं उत्तमक्षमाधर्मांग अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
अर्थाष्टकम् (पद्धरि छन्द) जल गंग नदी को विमल सोइ, धरि रतन पियाले शुद्ध होई।
यह धर्म क्षमा उत्तम सुजान, मैं पूजौं मन वच भक्ति आन।। ऊँ ह्रीं श्रीउत्तमक्षमाधर्मांगाय जन्जमरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
बावन चंदन घसि नीर लाय, धरि कनक रकेबी जिन चढाय।
यह धर्म क्षमा उत्तम सुजान, मैं पूजौं मन वच भक्ति आन।। ऊँ ह्रीं श्रीउत्तमक्षमाधर्मांगाय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
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