SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 590
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फूल कंचनवरन कल्पतरु के भले। गन्ध जुत रंग शुभ लेई निज कर चले। माल तीन गूंथ कामबाण नाशक सही। जानि इमि धर्म दशधा जजौं शिवमही।।4।। ऊँ ह्रीं श्री दशलक्षणधर्मेभ्यः कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। सुगम नैवेद्य मोद घने लाइये। विविध स्वादमय सु धरि भक्तिउर भाइये।। भूख दुखहर्ण स्वर्ण पात्र धरिके सही। जानि इमि धर्म दशधा जजौं शिवमही।।5।। ऊँ ह्रीं श्री दशलक्षणधर्मेभ्यः क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। दीपमणि रतनमय और घृतमय सही। धारि कनकथालमें सुआरति जु करि लही।। धर्म ज्योति मोह अंधकार नाशिका सही। जानि इमि धर्म दशधा जजौं शिवमही।।6।। ऊँ ह्रीं श्री दशलक्षणधर्मेभ्यः मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। धूप दश अंग मय लायकर सारजी। अगनि संग खेवहूं सुभक्ति उर धारजी।। कर्म छयकार भव वास नाशन सही। जानि इमि धर्म दशधा जजौं शिवमही।।7।। ॐ ह्रीं श्री दशलक्षणधर्मेभ्यः अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। लौंग खारिक सुनारिकेल सुक्खकार जी। और बादाम पुंगी फलादि सारजी।। लेइ निज हाथ में सुभक्ति धरिके सही। जानि इमि धर्म दशधा जजौं शिवमही।।8।। ऊँ ह्रीं श्री दशलक्षणधर्मेभ्यः मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। नीर गंध अक्षत सुफूल चरु सोइजी। दीप अरु धूप फल अरघ सँजोइजी।। पुरट थाली विषै भक्ति करिके सही। जानि इमि धर्म दशधा जजौं शिवमही।।9।। ॐ ह्रीं श्री दशलक्षणधर्मेभ्यः अनध्य पदप्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। धर्म भव कूपते काढने को रसी। भव उदधि पार करतार नवका इसी।। 590
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy