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________________ ता सुअवसर है भलो, अब करो पूजा धुनि कहै।। (वेसरी छन्द) जाने दश लक्षण व्रत कीना, ते सत्पुरुषनि में परवीना। भवसागर फिरनो मिटाजावै, जो नर दशलक्षण वृष भावे।। (भुजंगप्रयात छन्द) यही धर्म सारं, करै पापक्षारं। यही धर्मसारं, करें सुख अपारं। यही धर्म धीरा, हरै लोक पीरा। यही धर्म मीरा करै लोकतीरा।। (त्रिभंगी छन्द) यह धर्म हमारा, सबजग प्यारा, जगत उधारा हितदानी। यह दशविधि गाया, जनमन भाया, उच्च बताया जिनवानी।। यह शिव करतारा, अघते न्यारा, भवि उद्धारा मुनि धारा। ताको मैं ध्याऊं शीश नवाऊं, अर्घ चढ़ाऊं सुखकारा।। (चौपाई छन्द) या व्रत की महिमा कहि वीर, दशविधि धर्म हरै भवपीर। इसी धर्मबिन जग भरमाय, जजहु धर्म अति दुरलभ पाय।। (दोहा) दश प्रकार को धर्म यह, दशविधि सुरतरु जान। वांछित पद सेवक लहै, अधिक कहा सुखदान।। 588
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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