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________________ (चाल- बाजा बजिया भला ) शील महानगधर नमूँ मुनी। पंचेन्द्रिय संयम योगसंयुक्त।।1॥ ग्यारह अंगधारक नमूँ मुनी। पुनि चौदह जी पूरव के धार ।।2।। कोष्ठ बुद्धि रिधिधर नमूँ मुनी । पादानुसार आकाश बिहार ॥। 3 ॥ पाणाहारी हू नमूँ मुनी। धरै वृक्षमूल आतापन योग।।4।। जे मोनिथिति आहार ले मुनी । जाण्या राजरंक गृह सब इक सार ॥5॥ जे पंचमहाव्रत धर नमूँ मुनी। जे समिति गुप्ति पालक वरवीर॥6॥ जे देह माँहि विरकत मुनी नमूं । ते राग रोस भय मोह रहित ॥ 7 ॥ लोभ रहित संवर धरै मुनी। दुखकारी जी नाश्यो कामरुक्रोध ॥ 8॥ स्वेद मैल तैं लिपत है मुनी । आरंभ परिग्रहतें हैं विरक्त||9|| आवश्यकधर नमूँ मुनी। द्वादश तप धरि तन वै सोरवंत।।10।। एक ग्रास दोय लेत हैं मुनी । वे नीरस भोजन करत अनिंद।।11।। स्थिति मसान करते नमूं मुनी जे जे करम डहर सोखनकूं दिनंद।।12।। द्वादश संयम घर नमूं मुनी । जे विकथा चारि करी परिहार ।।13।। दो बीस परीसै सहै नमूं मुनी । संसार महार्णव ते उतरंति।।14।। धर्मबुद्धि नृपतिरै मुनी । जे काउसग करि रात्रि गमंत ॥15॥ सिद्धि रमा वरवै मुनी नमूं। जे पक्ष मास आहार करंत।।16।। गोदोहन वीरासन धरैं मुनी। नमूं धनुषसों वज्रासन धार ॥17॥ तपबल नभ विहरत मुनी नमूँ। वन गिरि गुह कंदर करत निवास ॥18॥ सत्तुमित्त समचित धरै मुनी। मैं वंदूं दिढ चारित के धार॥19॥ धरम शुकल ध्यावै ध्यान कूं मुनी । मैं वंदूं यतिवर मोक्ष गमंति॥20॥ चौबीस परिग्रह च्युत नमूं मुनी । ध्याऊँ मैं मुनिवर जग पवित्त॥21॥ रतनत्रय करि शुद्ध है मुनी । तिनकूं मैं वंदूं सुध करि चित्त॥22॥ 585
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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