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दीप मणिमय ज्योति सुन्दर, धूम्र वर्जित सोहने। तम मोहपटल विध्वंस कारन, चरनयुगमुनि अरचने।। इन्द्र चन्द्र नरेन्द्र पूजित, अखय निधि-दायक सदा। अक्षय महानस रिद्धिधर मुनि, पूजि हूँ मैं सर्वदा || 6 || ऊँ ह्रीं अक्षीण महानसरिद्धिधर सर्वमुनीश्वरेभ्यो दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।
धूप दश विधि अगनि के संग, स्वर्णधूपायन भरे। धूम्र मिसि वसुकर्म नाशैं, भविकजन जय जय करें। इन्द्र चन्द्र नरेन्द्र पूजित, अखय निधि-दायक सदा। अक्षय महानस रिद्धिधर मुनि, पूजि हूँ मैं सर्वदा ॥ 7 ॥ ऊँ ह्रीं अक्षीण महानसरिद्धिधर सर्वमुनीश्वरेभ्यः धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।
दाख श्रीफल चारु पुंगी, स्वर्णथाल भराइये।
श्री रिषीश्वर पूजितैं ही, मुक्ति के फल पाइये।।
इन्द्र चन्द्र नरेन्द्र पूजित, अखय निधि-दायक सदा। अक्षय महानस रिद्धिधर मुनि, पूजि हूँ मैं सर्वदा ॥8॥ ऊँ ह्रीं अक्षीण महानसरिद्धिधर सर्वमुनीश्वरेभ्यः फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
नीरगंध सुगंध तंदुल, पुष्प चरु दीपक धेरै।
धूप फल ले स्वर्ण भोजन, अर्घयजि शिवतिय वरै।।
इन्द्र चन्द्र नरेन्द्र पूजित, अखय निधि-दायक सदा।
अक्षय महानस रिद्धिधर मुनि, पूजि हूँ मैं सर्वदा ॥ 9 ॥ ऊँ ह्रीं अक्षीण महानसरिद्धिधर सर्वमुनीश्वरेभ्यः अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।
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