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(दोहा)
सुखी होऊ राजा प्रजा, मिटो सकल संताप । वधो धर्म जिनदेव को, श्रीरिषीराज प्रताप ।।
॥ इत्याशीर्वादः ॥
।। इति रसरिद्धिधारक मुनीश्वर सप्तम कोष्ठ पूजा सम्पूर्ण।।
अक्षीण महानसरिद्धि धारक मुनीश्वर अष्टम कोष्ठ पूजा (अडिल्ल)
अक्षयनिधि के दायक घातक कर्म के, अक्षीण महानस रिद्धिधार मुनिवर्य के। आह्वानन संस्थापन ममसन्निहित करूँ, संवौषट् ठः ठः वषट् त्रय उच्चरूँ।।1। ऊँ ह्रीं अक्षीणमहानसरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वराः अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्। ऊँ ह्रीं अक्षीणमहानसरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वराः अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं अक्षीणमहानसरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वराः अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
अथाष्टकम् (गीता छंद)
हिमवनोद्भव नीर शीतल, रत्न भृंग भराय ही। जन्म-जरु अरुमृत्युनासन, क्षपक चरन चढ़ाय ही ।।
इन्द्र चन्द्र नरेन्द्र पूजित, अखय निधिदायक सदा।
अक्षय महानस रिद्धिधर मुनि, पूजिहूँ मैं सर्वदा ॥ 1 ॥ ऊँ ह्रीं अक्षीण महानसरिद्धिधर सर्वमुनीश्वरेभ्यो जलम् निर्वपामीति स्वाहा।
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