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अगर तगर मलयागिर चंदन केलीनंद विमल कूँ। धूपदशांग खेवत ही अगनि संग जारत हैं अघ मल कूँ।।
यजूँ मुनि चरन कमल कूँ। औषधि रिद्धि यतीश यजूँ मुनिचरन कमल कूँ॥7॥ ऊँ ह्रीं क्षुद्रोपद्रव सर्वविघ्न रोग विनाशक औषधरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यो धूपम् निर्वपामीति
स्वाहा।
विविध भाँति के सुरन थालभरि ल्यायो मैं शुभ फल कूँ।
शुद्धभाव करि नितप्रति पूजे शिवसुख पार्व विमल कूँ।।
यजूँ मुनि चरन कमल कूँ। औषधि रिद्धि यतीश यजूँ मुनिचरन कमल कूँ॥8॥ ऊँ ह्रीं क्षुद्रोपद्रव सर्वविघ्न रोग विनाशक औषधरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यः फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
जल चंदन अक्षत अरु पुष्प जू नेवज दीप विमल कूँ।
धूप फलादि अर्घ चढ़ाये पावत पद निमल कूँ।
यजूँ मुनि चरन कमल कूँ। औषधि रिद्धि यतीश यजूँ मुनिचरन कमल कूँ॥9॥ ऊँ ह्रीं क्षुद्रोपद्रव सर्वविघ्न रोग विनाशक औषधरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यः अर्घम्
निर्वपामीति स्वाहा।
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