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सुवरन थालभरि चन्द्रकिरण सम ल्यायो अछत उजलकूँ।
__ अक्षय पद पावन फँ पूजू श्री गुरुपादयुगल कूँ।। यजॅ मुनि चरन कमल कूँ। औषधि रिद्धि यतीशाय मुनिचरन कमल कूँ।।3।। ॐ ह्रीं क्षुद्रोपद्रव सर्वविघ्न रोग विनाशक औषधरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यः अक्षतम्
निर्वपामीति स्वाहा।
काम रिपु मोहि अधिक सतावै आत्म लगावत मल कूँ।
या के नाश करन के कारन मुनिपद चहोईं कमल कूँ।। यजूं मुनि चरन कमल कूँ। औषधि रिद्धि यतीशायज॑ मुनिचरन कमल कूँ।।4।। ऊँ ह्रीं क्षुद्रोपद्रव सर्वविघ्न रोग विनाशक औषधरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यः पुष्पम्
निर्वपामीति स्वाहा।
क्षुधा वेदनी रोग महादुठ जारत हृदय मल कूँ।
नानाविधि नेवजनै पूजें शांत करत क्षुत् कमल कू।। यजूं मुनि चरन कमल कूँ। औषधि रिद्धि यतीशायजूं मुनिचरन कमल 1।।5।। ॐ ह्रीं क्षुद्रोपद्रव सर्वविघ्न रोग विनाशक औषधरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यो नैवेद्यम्
निर्वपामीति स्वाहा।
दीप रतनमय जोति मनोहर नाश करत तम मल कूँ।
ज्ञान उद्योतन कारन पूनँ श्री गुरु पाद कमल कूँ।। यजूं मुनि चरन कमल कूँ। औषधि रिद्धि यतीशाय मुनिचरन कमल ।।6।। ऊँ ह्रीं क्षुद्रोपद्रव सर्वविघ्न रोग विनाशक औषधरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यो दीपम् निर्वपामीति
स्वाहा।
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