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शरीर सूक्ष्म सब जन कूँ दीखे, इंद्रादिक मिलि आई। जिनतें हलैं चलैं नहिं कब हूँ, ज्या विक्रियारिधि पाई।।मुनीश्वर, पूनँ अरघ चढ़ाई ॥5॥
ॐ ह्रीं गरिमा विक्रियारिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यो अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।
पृथ्वी ऊपरी तिष्ठे रिषिवर, मेरु शिखर स्पर्शाई।
चंद्र-सूर्य-ग्रह अंगुलि धारे, प्राप्ति रिद्धि करि भाई।। मुनीश्वर पूजों अरघ चढ़ाई, ज्या विक्रियारिधि पाई। मुनीश्वर, पूनँ अरघ चढ़ाई ॥6॥
ऊँ ह्रीं प्राप्ति विक्रियारिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यो अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।
अनेक प्रकार शरीर वणावें, पृथ्वी मैं धसि जाई।
भूमि माँहि डुबकी जलवत लैं, रिद्धि प्राकाम्य कहाई।। मुनीश्वर पूजों अरघ चढ़ाई, ज्या विक्रियारिधि पाई। मुनीश्वर, पूनँ अरघ चढ़ाई ॥7॥
ॐ ह्रीं प्राकाम्यविक्रिया रिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यो अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।
तप बल मुनिवर कै सब हौवे, तीन लोक ठकुराई।
इंद्रादिक सब शीश नवावें, ईशत्वरिधि उपजाई।। मुनीश्वर पूजों अरघ चढ़ाई, ज्या विक्रियारिधि पाई। मुनीश्वर, पूनँ अरघ चढ़ाई ॥8॥
ऊँ ह्रीं ईशत्व विक्रियारिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यो अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।
तीन लोक जिनके दर्शन तें, देखत वसि है जाई।
सबके वल्लभ गुणके दाता, यह वशित्व रिधि भाई।। मुनीश्वर पूजों अरघ चढ़ाई, ज्या विक्रियारिधि पाई। मुनीश्वर, पूनँ अरघ चढ़ाई ॥9॥
ॐ ह्रीं वशित्व विक्रियारिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यो अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।
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