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जलादि द्रव्य लेय हेम थाल मैं भरूँ। श्री मुनींद्र चरण चहाडि मुक्ति अंगना वरूँ। चारण ऋद्धिधारी मुनीश्वर पूज करूँ जी। पूज करूँ पूज करूँ पूज करूँ जी॥9॥ __ ऊँ ह्रीं चारणरिद्धिधारक सर्वऋषीश्वरेभ्यः अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।
अथ प्रत्येक पूजा (सोरठा) क्रिया चारण नव भेद, रिद्धिधार जे हैं मुनी। जुदे जुदे निरखेद, पूनँ अरघ चढ़ाय कै।।1।। ऊँ ह्रीं नव प्रकार क्रिया चारणरिद्धिधारक सर्वऋषीश्वरेभ्यः अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।
जल ऊपरि थलवत चालें, जलजंतु एक नहीं हालैं।
जल चारण मुनिवर ये हैं, जिन पूजें शिव पद लै हैं।।2। ऊँ ह्रीं जल चारण क्रियाऋद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यः अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।
धरती सूं अंगुल च्यारे ऊँचो तिन को जु विहारें।
क्षण मैं बहुत योजन जै हैं, जंघा चारण पूर्जे हैं।।3।। ऊँ ह्रीं जंघा चारण क्रियारिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यःअर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।
मकड़ी तंतु पर चालें, सो तंतु तुटै नहीं हालैं।।
ते तंतू चारण रिधिधर, तिन पूर्जे होवै शिववर॥4॥ ॐ ह्रीं तंतु चारण क्रियारिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यः अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।
पुष्पन परिगमन कराही, पुष्पजीवन बाधा नाहीं।
मुनि चारण पुष्प वही हैं, तिन पू0 मुक्ति लही हैं।।5।। ॐ ह्रीं पुष्प चारण क्रियारिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यः अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।
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