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हो करुणासागर गुण अगार, मुझ देहि अखय सुख को भंडार। मैं सरण गही मुझ त्यार त्यार, मोहिं निज स्वरूप द्यो बारबार॥9॥
(धत्ता) इह मुनिगुणमाला परम रसाला, जो भविजन कंठै धरई। सब विघन विनासई मंगल भासई, मुक्ति रमा वर नर वरई।।10। ऊँ ह्रीं भूत भविष्यत् वर्तमानकाल सम्बन्धि पंच प्रकार सर्वमुनीश्वरेभ्य
अनर्घपदप्राप्तये जयमालायाघु निर्वपामीति स्वाहा।
(दोहा) सर्वमुन्या की पूज यह, करै भव्य चित लाय। ऋद्धि सर्व घर मैं वसै,
विघ्न सबै नसि जाय।।1॥
।।इत्याशीर्वादः परि पुष्पांजलि क्षिपेत्।।
।।इति समुच्चय पूजा॥
चतुर्विंशति तीर्थंकर गणधर मुनिवर पूजा
(छन्द लक्ष्मीधरा) वृषभ सेनादि अस्सीचऊ गणधरा। वृषभ के चउअसी सहस्त्र सब मुनिवरा।।
नीर गंधाक्षतं पुष्प चरु दीपकं। धूप फल अर्घ लेय हम यजै महर्षिकं।।1॥ ऊँ ह्रीं वृषभेश्वरस्य वृषभसेनादि चतुरशीति गणधर चतुरशीतिसहस्त्र सर्वमुनीश्वरेभ्यः अर्घ
निर्वपामीति स्वाहा।
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