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ऊँ ह्रीं अगहनशुक्ला एकादश्यां श्री नमिनाथ जिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणक प्राप्ताय अयं
__ निर्वपामीति स्वाहा।।21॥
पडिवा शुभ क्वार सदी को, श्री नेमिनाथ जिनजी को।
इच्छो केवल सत ज्ञानं, हम पूजन ही दुःख हान।। ऊँ ह्रीं आश्विनशुक्ला प्रतिपदायां श्री नेमिनाथ जिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणक प्राप्ताय अध्यं
निर्वपामीति स्वाहा।॥22॥
तिथि चैत्र चतुर्थी श्यामा, श्री पार्शवप्रभू गुण धामा।
केवललहि तत्त्वप्रकाशा, हम पूजत कर शिव आशा।। ऊँ ह्रीं चैत्रकृष्णा चर्तुथ्यां श्री पाव जिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणक प्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति
स्वाहा।।23॥
दशमी वैशाख सुदी को, श्री वर्धमान जिनजी को।
उपजो केवल सुखदाई, हम पूजत विघ्न नशाई।। ऊँ ह्रीं वैशाखशुक्ला दशम्यां श्री वर्द्धमान जिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणक प्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति
स्वाहा।।240
जयमाला (सृग्विणी) जय ऋषभनाथ जी ज्ञान के सागरा, घातिया घातकर आप केवल बरा। कर्म बन्धनमई सांकला तोड़कर, आपका स्वाद ले स्वाद पर छोड़कर।।1।।
धन्य तू धन्य तू धन्य तू नाथ जी, सर्व साधु नमें तोहि को नाथ जी। दर्श तेरा करें ताप मिट जात हैं, मर्म भाजें सभी पाप हट जात है।।2।।
धन्य पुरुषार्थ तेरा महा अद्भुतं, मोहसा शत्रु मारा त्रिघाती हतं। जीत त्रैलोक्य को सर्वदर्शी भए, कर्म सेना हती दुर्ग चेतन लए।।3।।
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