________________
ऊँ ह्रीं ऋषभ तीर्थंकर मुनींद्राय कामवाणविध्वंशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
फेणी सुहाल बरकी पकवान लाए, क्षुदरोग नाशने कारण काल पाए। श्री तीर्थनाथ वृषभेश मुनीन्द्र चरणा, पूर्जे सुमंगल करण सब पाप हरणा।। ऊँ ह्रीं ऋषभ तीर्थंकर मुनींद्राय क्षुधारोग वि नाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शुभ दीप रत्नत्रय लाय तमोपहारी, तप मोह नाश मम होय अपार भारी।
श्री तीर्थनाथ वृषभेश मुनीन्द्र चरणा, पूर्जे सुमंगल करण सब पाप हरणा।। ॐ ह्रीं ऋषभ तीर्थंकर मुनींद्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
सुन्दर सुगंधित सु पावन धूप खेऊँ, अरु कर्म काट को थाल निजात्म बेऊँ। श्री तीर्थनाथ वृषभेश मुनीन्द्र चरणा, पूर्जे सुमंगल करण सब पाप हरणा।। ऊँ ह्रीं ऋषभ तीर्थंकर मुनींद्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
द्राक्षा बदाम फल सार भराय थाली, शिव लाभ होय सुख से समता संभाली।
श्री तीर्थनाथ वृषभेश मुनीन्द्र चरणा, पूर्णां सुमंगल करण सब पाप हरणा।। ऊँ ह्रीं ऋषभ तीर्थंकर मुनींद्राय मोक्षफलप्राप्ताय फलं निर्वपामीति स्वाहा।
शुभ अष्ट द्रव्य मय उत्तम अध्य लाया, संसार खार जल तारण हेतु आया। श्री तीर्थनाथ वृषभेश मुनीन्द्र चरणा, पूर्जे सुमंगल करण सब पाप हरणा।। ऊँ ह्रीं ऋषभ तीर्थंकर मुनींद्राय अनध्यपदप्राप्ताय अयं निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला
जय मुदारूप तेरे सदा दोष ना, ज्ञान श्रद्धान पूरित धरै शोक ना। राज को त्याग वैराग्य धारी भए, मुक्ति का राज लेने परम मुनि थय।।1।।
497