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कर्णेन्द्रिय नवयोजना, शब्द सुनत चक्रीश । तातें अधिक श्रुशक्तिधर, पूजूं चरण मुनीश ॐ ह्रीं दूरश्रवणशक्तिऋद्धिप्राप्तेभ्यः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥ 210॥
बिन अभ्यास मुहूर्त में, पढ़ जानत दश पूर्व अर्थ भाव सब जानते, पूजूं यती अपूर्व।। ऊँ ह्रीं दशपूर्वित्वऋद्धिप्राप्तेभ्यः अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।211।।
चौदह पूर्व मुहूर्त में, पढ़ जानत अविकार। भाव अर्थ समझें सभी, पूजूं साधु चितारा॥ ॐ ह्रीं चतुर्दशपूर्वित्वऋद्धिप्राप्तेभ्यः अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।212॥
बिन उपदेश सुज्ञान लहि, संयम बिधि चालन्त। बुद्धि अमल प्रत्येक धर, पूजूं साधु महन्त ।। ॐ ह्रीं प्रत्येकबुद्धित्वऋद्धिप्राप्तेभ्यः अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।213॥
न्याय आगम बहू, पढ़े बिना जानन्त । परवाद जीतें सकल पूजूं साधु महन्त।। ॐ ह्रीं वादित्वऋद्धिप्राप्तेभ्यः अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।214॥
अग्नि पुष्प तंतू चलें, जंघा श्रेणी चाल। चारण ऋद्धि महान धर, पूजूं साधु विशाल।। ॐ ह्रीं जलजंघातंतुपुष्पपत्रबीजश्रेणिवन्यादिनिमित्ताश्रयचारणऋद्धिप्राप्तेभ्यः अयं निर्वपामीति
स्वाहा।।215॥
नभ में उड़कर जात हैं, मेरु आदि शुभ थान। जिन वन्दत भविबोधते, जजूं साधु सुख खान।। ॐ ह्रीं आकाशगमनशक्तिचारणर्द्धिप्राप्तेभ्यः अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥ 216।।
अणिमा महिमा आदि बहु, भेद विक्रिया रिद्धि। धरें करें न विकारता, जजूं यती समृद्धि।। ऊँ ह्रीं अणिमामहिमालधिमागरिमाप्राप्तिप्राकाम्यवशित्वेशित्वऋद्धिप्राप्तेभ्यः अघ्यं निर्वपामीति
स्वाहा।।217॥
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