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धरै न चाह भोग रोग के समान जानते, शरीर रक्ष काज एक बार भक्त ठानते। सकल दिवस सु ध्यान शास्त्र पाठमें वितावते, जजू यती अलाभ अन्न लाभ सा निभावते।।
ऊँ ह्रीं एकभुक्तनियमधारकसाधुपरमेष्ठिभ्यः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।197॥
खडे रहे सुलेय अन्न देह शक्ति देखते,नहोय बल विहार तब मरण समाधि पेखते। करें सु आत्म ध्यान भी खडेखडे पहाड़ पर, जजू यती विराजते निजानुभव चटान पर।। ऊँ ह्रीं आस्थितभोजननियमधारकसाधुपरमेष्ठिभ्यः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।199॥
(दोहा) अठविंशति गुण धर यती, शील कवच सरदार। रत्नत्रय भूषण धरें, टारे कर्म प्रहार।।
ऊँ ह्रीं अस्मिन् बिम्बप्रतिष्ठोत्सवे मुख्यपूजार्हअष्टावलयोन्मुद्रित साधुपरमेष्ठिभ्यस्तन्मूलगुणग्रामेभ्यश्च पूर्णाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
नवम वलय में 48 ऋद्धिधारी मुनीश्वरों की पूजा
(दोहा) लोकालोक प्रकाश कर, केवलज्ञान विशाल। जो धारें तिन चरण को, पूजू नम निज भाल।। ऊँ ह्रीं सकललोकालोकप्रकाशनिरावरणकैवल्यलब्धिधारकेभ्यः अयं निर्वपामीति
स्वाहा।।1991
वक्र सरल पर चित्तगत, मनपर्यय जानेय। ऋजु विपुलमति भेद धर, पूजू साधु सुध्येय।। ऊँ ह्रीं ऋजुमतिविपुलमतिमनःपर्ययधारकेभ्यः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।2000
देश परम सर्वा अवधि, क्षेत्र काल मर्याद। द्रव्य भाव को जानता, धारक पूजू साध।
ॐ ह्रीं अवधिधारकेभ्यः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।201॥
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