________________
(त्रिभंगी) मुनिगण को पालत आलस टालत आप संभालत परम यती। जिनवाणि सुहानी शिवसुखदानी भविजन मानी धर सुमती।। दीक्षा के दाता अघ से त्राता सम सुखभाता ज्ञानपती।
शुभ पंचाचारा पालन प्यारा हैं आचारज कर्म हती।। ऊँ ह्रीं अनवद्यविद्याविद्योतनाय आचार्यपरमेष्ठिने अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।3।।
(त्रोटक) जय पाठक ज्ञान कृपान नमो, भवि जीवन हत अज्ञान नमो।
निज आत्म महानिधि धारक हैं, संशय वन दाह निवारक हैं। ऊँ ह्रीं द्वादशांगपरिपूरण-श्रुतपाठनोद्यत-बुद्धिविभवोपाध्याय परमेष्ठिभ्यो अध्यं निर्वपामीति
स्वाहा।।4।।
(द्रुतविलंबित) सुभग तप द्वादश कर्तार हैं, ध्यान सार महान प्रचार हैं।
मुकति वास अचल यति साधते, सुख सु आतम जन्य सम्हारते।। ऊँ ह्रीं घोरतपोऽभिसंस्कृतध्यानस्वाध्यायनिरत साधुपरमेष्ठिभ्यो अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।5।।
(मालिनी) अरि हनन सु अरिहन् पूज्य अर्हन बताये। मं पाप गलन हेतु मंगलं ध्यान लाए।। मंगं सुखकारण मंगलीकं जताए। ध्यानी छवि तेरी देखते दुःख नशाये।।
ऊँ ह्रीं अर्हत्परमेष्ठिमंगलाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।6।।
427