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अथाष्टक ॐ आं क्रों ह्रीं कलायुक्त फ वर्ण बीजाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं कलायुक्त फ वर्ण बीजाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। ॐ आं क्रों ह्रीं कलायुक्त फ वर्ण बीजाय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। ॐ आं क्रों ह्रीं कलायुक्त फ वर्ण बीजाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। ॐ आं क्रों ह्रीं कलायुक्त फ वर्ण बीजाय चळं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं कलायुक्त फ वर्ण बीजाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। ॐ आं क्रों ह्रीं कलायुक्त फ वर्ण बीजाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं कलायुक्त फ वर्ण बीजाय फलं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं कलायुक्त फ वर्ण बीजाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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सर्वाभरण भूषाढ्यं प्रसन्नहृदयं पुनः। सर्वविघ्न प्रशान्त्यर्थं फकारं प्रयजाम्यहम्।।।
ॐ आं क्रो ह्रीं कलायुक्त फ वर्ण बीजाय अयं निर्वपामीति स्वाहा॥12॥
इत्याह्वानादिकं कर्म क्रियते श्रेयसे मया। तत्सर्वं पूर्णतामेति, शान्तिकान्तिभिरादरात्।। ऊँ आं क्रो ह्रीं कलायुक्त फ वर्ण बीजं.......नामधेयस्य.......सर्वशान्तिं विधेहि स्वाहा।
शान्ति धारा।
अथ मण्डलोपरि दिग्पालार्चनम् ततो बहिश्चापि सुरेन्द्रमग्निं-यमं तथा नैऋतिमम्बुधिं च। मरुत्कुबेरो सशेखरं च, दिशाधिनाथन क्रमतो यजामि।। ___ दिग्पाल पूजाविधानाय पुष्पाक्षतान् क्षिपेत्।
जब पूर्वस्या दिशि शक्र पूजनमाहभास्वन्तमैरावणवारणेन्द्र-मारूढ़मिन्द्राण्यधिराजमिन्द्रम्।
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