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ऊँ आं क्रों ह्रीं षोडशकलायुक्त र बीजाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। ॐ आं क्रों ह्रीं षोडशकलायुक्त र बीजाय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। ॐ आं क्रों ह्रीं षोडशकलायुक्त र बीजाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं षोडशकलायुक्त र बीजाय चळं निर्वपामीति स्वाहा। ॐ आं क्रों ह्रीं षोडशकलायुक्त र बीजाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। ॐ आं क्रों ह्रीं षोडशकलायुक्त र बीजाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं षोडशकलायुक्त र बीजाय फलं निर्वपामीति स्वाहा। ॐ आं क्रों ह्रीं षोडशकलायुक्त र बीजाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
सर्वाभरण भूषाढ्यं प्रसन्नहृदयं पुनः। सर्वविघ्नप्रशान्त्यर्थं र बीजं प्रयजाम्यहम्।।।। ऊँ आं क्रो ह्रीं षोडशकलायुक्त र बीजाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥11॥
इत्याह्वानादिकं कर्म क्रियते श्रेयसे मया। तत्सर्वं पूर्णतामेति, शान्तिकान्तिभिरादरात्।। ऊँ आं क्रो ह्रीं षोडशकलायुक्त र बीजं............नामधेयस्य..........सर्वशान्तिं विधेहि
स्वाहा।
शान्ति धारा।
अथ फ बीज पूजा कलान्वितं कोमलकायकान्तिं, विभूषणांगं विहितोग्रशक्तिम्।
अनन्तकर्मादिपतिं समर्थं द्विरष्टपत्रं प्रयजे फकारम्।। ॐ आं क्रों ह्रीं कलायुक्त फ वर्ण बीज! अत्र एहि-एहि संवौषट्। ऊँ आं क्रों ह्रीं कलायुक्त फ वर्ण बीज! अत्र तिष्ठ-तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ आं क्रों ह्रीं कलायुक्त फ वर्ण बीज! अत्र मम सन्निहितो भव-भव वषट्।
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