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ऊँ आं क्रों ह्रीं हेमवर्णाय क्षी बीजाय चळं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं हेमवर्णाय क्षी बीजाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। ॐ आं क्रों ह्रीं हेमवर्णाय क्षी बीजाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं हेमवर्णाय क्षी बीजाय फलं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं हेमवर्णाय क्षी बीजाय अध्यं निर्वामीति स्वाहा।
सुवर्णवस्त्रान्वितशस्त्रहस्तं-विभूषणाङ्गं निजवाहनस्थ।
समस्तविघ्नौघ निवारणार्थं नीरादिभेदैः प्रयजे क्षी बीजम्।। ॐ आं क्रो ह्रीं हेमवर्णाय क्षी बीजाय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।8।।
इत्याह्वानादिकं कर्म क्रियते श्रेयसे मया।
तत्सर्वं पूर्णतामेति, शान्तिकान्तिभिरादरात्।। ॐ आं क्रो ह्रीं हेमवर्णाय क्षी बीजाय...............नामधेयस्य............सर्वशान्तिं विधेहि
स्वाहा।
शान्ति धारा।
अथ ल बीज पूजा सम्भाद्य कृष्णदक्षं स-ल्लक्ष योजनादर्यकम्। क्षितिमण्डल कोणस्थं ल बीजं प्रयजाम्यहम्।।
ॐ आं क्रों ह्रीं कनकवर्ण चतुर्भुजालंकृत ल बीज! अत्र एहि-एहि संवौषट्। ऊँ आं क्रों ह्रीं कनकवर्ण चतुर्भुजालंकृत ल बीज! अत्र तिष्ठ-तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ आं क्रों ह्रीं कनकवर्ण चतुर्भुजालंकृत ल बीज! अत्र मम सन्निहितो भव-भव वषट्।
अथाष्टक ऊँ आं क्रों ह्रीं कनकवर्ण चतुर्भुजालंकृत ल बीजाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं कनकवर्ण चतुर्भुजालंकृत ल बीजाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।
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