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नीरैर्नीरजवासितैः सुरभिसद्-गन्धैः सितैरक्षतैः, पुष्पैश्चारूचरू प्रदीपनिकरैधूपैः फलैश्चाध्यकैः। शुभ्र सूज्ज्वलचारूदेहममृतं शान्तं त्रिलोकेश्वरं, पञ्चब्रह्ममयं समस्तवदनं तेजो मयाराध्यते।।
ऊँकार बीजं सुखसार्थसिद्ध-महन्मुखाद्यक्षरमन्त्ररूपम्।
कामस्वरं कामहरं नमामि,
सदा योगिगणेन्द्रमध्यैः। ॐ आं क्रो ह्रीं परमज्योति स्वरूपानन्तचतुष्टयात्मकाय ऊँकाराय अध्यं निर्वपामीति
स्वाहा।।5।
इत्याह्वानादिकं कर्म क्रियते श्रेयसे मया। तत्सर्वं पूर्णतामेति, शान्तिकान्तिभिरादरात्।।
ऊँ आं क्रो ह्रीं परमज्योति स्वरूपानन्तचतुष्टयात्मकाय ऊँकार.......नामधेयस्य......सर्वशान्तिं विधेहि स्वाहा।
शान्ति धारा।
अथ क्षी बीज पूजा यक्षराक्षसगन्धर्व ब्रहमराक्षसमर्दकम्। क्षितिमण्डलमध्यस्थं क्षी बीजं प्रयजाम्यहम्।।
ऊँ आं क्रों ह्रीं हेमवर्ण क्षी बीज! अत्र एहि-एहि संवौषट्। ऊँ आं क्रों ह्रीं हेमवर्ण क्षी बीज! अत्र तिष्ठ-तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ॐ आं क्रीं ह्रीं हेमवर्ण क्षी बीज! अत्र मम सन्निहितो भव-भव वषट्।
अथाष्टक ॐ आं क्रों ह्रीं हेमवर्णाय क्षी बीजाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। ॐ आं क्रों ह्रीं हेमवर्णाय क्षी बीजाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। ॐ आं क्रों ह्रीं हेमवर्णाय क्षी बीजाय अक्षतान निर्वपामीति स्वाहा। ॐ आं क्रों ह्रीं हेमवर्णाय क्षी बीजाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
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