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________________ ॐ आं क्रों ह्रीं शुभ्रवर्ण सर्वाभरणभूषित शाकिनी-डाकिनी-भूत-व्यन्तर-पिशाच-राक्षसग्रहयूथच्छेदन-भेदन-ताडनकर्म समर्थाक्षराय सकल स्वरराय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं शुभ्रवर्ण सर्वाभरणभूषित शाकिनी-डाकिनी-भूत-व्यन्तर-पिशाच-राक्षसग्रहयूथच्छेदन-भेदन-ताडनकर्म समर्थाक्षराय सकल स्वरराय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं शुभ्रवर्ण सर्वाभरणभूषित शाकिनी-डाकिनी-भूत-व्यन्तर-पिशाच-राक्षसग्रहयूथच्छेदन-भेदन-ताडनकर्म समर्थाक्षराय सकल स्वरराय चळं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं शुभ्रवर्ण सर्वाभरणभूषित शाकिनी-डाकिनी-भूत-व्यन्तर-पिशाच-राक्षसग्रहयूथच्छेदन-भेदन-ताडनकर्म समर्थाक्षराय सकल स्वरराय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं शुभ्रवर्ण सर्वाभरणभूषित शाकिनी-डाकिनी-भूत-व्यन्तर-पिशाच-राक्षसग्रहयूथच्छेदन-भेदन-ताडनकर्म समर्थाक्षराय सकल स्वरराय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं शुभ्रवर्ण सर्वाभरणभूषित शाकिनी-डाकिनी-भूत-व्यन्तर-पिशाच-राक्षसग्रहयूथच्छेदन-भेदन-ताडनकर्म समर्थाक्षराय सकल स्वरराय फलं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं शुभ्रवर्ण सर्वाभरणभूषित शाकिनी-डाकिनी-भूत-व्यन्तर-पिशाच-राक्षसग्रहयूथच्छेदन-भेदन-ताडनकर्म समर्थाक्षराय सकल स्वरराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। सर्वकर्म समर्थ यं सर्वव्याधिविनाशनम्। सर्वभूतारिमारिघ्नं नमस्कुर्वे स्वरं परम्॥ ऊँ आं क्रों ह्रीं शुभ्रवर्णाय सर्वाभरणभूषिताय शाकिनी-डाकिनी-भूत-व्यन्तर-पिशाच-राक्षसग्रहयूथच्छेदन-भेदन-ताडनकर्म समर्थाक्षराय सकल स्वराय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।6।। 409
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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