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________________ इत्याह्वानादिकं कर्म क्रियते श्रेयसे मया। तत्सर्वं पूर्णतामेति, शान्तिकान्तिभिरादरात्।। ऊँ आं क्रो ह्रीं कनकवर्ण षोडशभुजालंकृत क्ष बीजं......नामधेयस्य.....सर्वशान्तिं विधेहि स्वाहा। शान्ति धारा। अथ सकल स्वर पूजा कुदोद्भहिस्थानगतं प्रशस्तं, शान्तं समस्तं शरदिन्दुवर्णम्। दुष्टग्रहोच्चाटन दक्षबीजं, संस्थापयेऽहं सकलं स्वरं तम्।। ॐ आं क्रों ह्रीं शुभ्रवर्ण सर्वाभरणभूषित शाकिनी-डाकिनी-भूत-व्यन्तर-पिशाच-राक्षस ग्रहयूथच्छेदन-भेदन-ताडनकर्म समर्थाक्षर सकल स्वर! अत्र एहि-एहि संवौषट्। ऊँ आं क्रों ह्रीं शुभ्रवर्षाय सर्वाभरणभूषित शाकिनी-डाकिनी-भूत-व्यन्तर-पिशाच-राक्षसग्रहयूथच्छेदन-भेदन-ताडनकर्म समर्थाक्षर सकल स्वर! अत्र तिष्ठ-तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ॐ आं क्रों ह्रीं शुभ्रवर्ण सर्वाभरणभूषित शाकिनी-डाकिनी-भूत-व्यन्तर-पिशाच-राक्षसग्रहयूथच्छेदन-भेदन-ताडनकर्म समर्थाक्षर सकल स्वर! अत्र मम सन्निहितो भव-भव वषट्। अथाष्टक ॐ आं क्रों ह्रीं शुभ्रवर्ण सर्वाभरणभूषित शाकिनी-डाकिनी-भूत-व्यन्तर-पिशाच-राक्षसग्रहयूथच्छेदन-भेदन-ताडनकर्म समर्थाक्षराय सकल स्वरराय जलं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं शुभ्रवर्ण सर्वाभरणभूषित शाकिनी-डाकिनी-भूत-व्यन्तर-पिशाच-राक्षसग्रहयूथच्छेदन-भेदन-ताडनकर्म समर्थाक्षराय सकल स्वरराय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। 408
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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