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चारित नाम सुनत हरषावे, सो जिय चारित महिमा पावे। चारित धारत है धनि वाको, मैं पूजों मन वच तन ताको।। यह चारित पीड़ाहर भाई, धारक शक्रविभव को पाई । शिववांछक सेवत हैं याको, मैं पूजों मन वच तन ताको।।
चारित सर्वहितू लखि भाई, चारित सर्वोत्तम सुखदाई। मुनिजन पूजत ध्यावत याको, मैं पूजों मन वच तन ताको।। चारित को हम भी ललचावें, क्या जाने किस भव में पावें । इस भव करत भावना याको, मैं पूजों मन वच तन ताको।। चारित का शरणा जिन पाया, ताने निजभव सफल बनाया। शक्तिप्रद हितकर गिन याको, मैं पूजों मन वच तन ताको।। सुर नर पूजत ताहि को, जो चारित्र लहाय
सो चारित महिमा अतुल, नमों सदा शिर नाय ।।
ओं ह्रीं श्री सम्यक्चारित्राय जयमालार्ध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
समुच्चय जयमाला दोहा
सम्यग्दर्शन ज्ञान सह, चारित लेहु मिलाय । मोक्षमार्ग ये तीन ही, मैं पूजों शिर नाय।।
चौपाई
रत्नत्रय शिवमारग जान, या बिन मोक्षमार्ग ना आना।
ये ही शिवदायक मन लाय, मोको भवहर होय सहाय ।।
चाल मुनियानन्दी की
भुवन त्रय मुकुट शुभ, रतन त्रय जानिये। तीन जग जीव थुति, करे हित मानिये।। तास फल पापमल, धोय निज शु करें। मैं जजों भाव तैं, कार्य वांछित सरें॥1॥
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