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मार्ग पड़ी पगअड़ी वस्तु जो, ले मुनिराज उठाई। तो उनके वर संयम मांही, दोष लगे अधिकाई।। पादपग्रहण यह दोष दूर कर समिति एषणा पाले।
या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं पादपग्रहणान्तरायरहितैषणासमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
राह पड़ी जो वस्तु आप कर, लें मुनिराज उठाई अन्तराय तो गिनें जैन गुरु, लोभ धरें न कदाई।। करग्रहण यह दोष त्याग के, समिति एषणा पाले।
या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं करग्रहणान्तरायरहितैषणासमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
ऐसे वत्तिस अन्तराय जो, भोजन कालिक पाले।। तो मुनि संयम पाले अपने, गुणलोभी अघ टाले।। समिति एषणा ताके शुध हो, स्वर्ग मोक्ष सुखदाई।
या जुत सम्यक्चारित पूजों, जो मेरे मन भाई। ओं ह्रीं द्वात्रिंशदन्तरायरहितैषणासमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
चौपाई छन्द भोजन में नख निकले सोय, अन्तराय तो गुरु को होय।
समिति एषणा तब शुध जान, या जुतचारित पूज्यसुमान।। ओं ह्रीं नखमलरहितैषणासमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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