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जो मुनि भोजन को मग जातें, करता वमन निहारे। तो तादिन आहार तजे यह, अन्तराय सु विचारे।। छर्दि दोष को तज के मुनिवर, समिति एषणा पाले।
या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं छार्दिदोषरहितैषणासमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
रुदन करन्ते परको देखे, भोजन-बेला कोई। अन्तराय तो होय मुनी को, भोजन करे न सोई।। 'रुदनदोष' यह तजे महामुनि, समिति एषणा पाले।
या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं रुदनान्तरायरहितैषणासमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
निज पर को मुनि लोहू देखें, भोजन बेला कोई।
अन्तराय तो लहें सुगुरुवर, समताधर जित सोई।। 'रुधिरदोष' यह तजे मुनीश्वर, समिति एषणा पाले।
या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं रुधिरदोषरहितैषणासमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
अश्रुपात निज पर के देखें, भुक्तिकाल मुनिराई।
अन्तराय तो गिनें जगद्गुरु, करुणासागर भाई।। 'अश्रुपातदूषण' यह तज के, समिति एषणा पाले।
या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं अश्रुपातान्तरायरहितैषणासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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