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जो भोजन मन चाहत नाहीं, खावत अरुचि कराहे। दाता की निन्दा फिर ठानें, तो निज संयम दाहे।। धूमदोष याको मुनि त्यागें, समिति एषणा पाले।
या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं धूमदोषरहितैषणासमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
दोहा
ऐसे तेइस दुगुन मल, टालत हैं मुनिराय।
तब भोजन करते सही, ते गुरु जजों सुभाय।। ओं ह्रीं षट्चत्वारिंशद्दोषरहितैषणासमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वामीति स्वाहा।
मनि के भोजन रते नभ से, काक वीट कर जावे। देखे, मनि तो भोजन छोड़े, हिये खेद ना लावे।। काकदोश यह तजें यतीश्वर, समिति एषणा पाले।
या जत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं काकान्तरायरहितैषणासमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
अपने पग जो अशुचि वस्तु से, लिपटे होंय कदाई। देखे मुनि तो भोजन छांडे, अन्तराय गिन भाई।। दोष अशौच्य तजे मुनि याको, समिति एषणा पाले।
या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं अशौच्यान्तरायरहितैषणासमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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