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भोजन पहले दाता की थुति, जो मुनिराज उचारे।
तो अपने तप संयम माहीं, दूषण ही निरधारें। पूरबथुति अघ को तजके यों, समिति एषणा पाले।
या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं पूर्वस्तुतिदोषरहितैषणासमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
भोजन दाता के घर ले मुनि, पीछे यह विधि लावे। दाता की थुति करके भारी, आप दोष लिपटावे।। पीछे थुति यह दोष त्याग मुनि, समिति एषणा पाले।
या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं पश्चात्स्तुतिदोषरहितैषणासमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
मुनिभोजन ले जिस दाता घर, ता प्रसन्नता काजे।
अपनी विद्याएँ दिखला के दोष आपको साजे।। विद्यादोष त्याग यह मुनिवर, समिति एषणा पाले।
या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं विद्यादोषरहितैषणासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
मन्त्र तन्त्र जंत्रादिक अतिशय, चमत्कार बतलावें। पीछे भोजन लेय यतीश्वर, तो शिर पाप बंधावें।। मन्त्रदोष यह तज के योगी, समिति एषणा पाले।
या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं मन्त्रदोषरहितैषणासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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