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धत्ता मुनिवर स्वामी, न| सिरनामी, दुय कर जोड़ि विनयकरी। दीक्षा अति निर्मल देउ मुझ उजली ब्रह्मजिणदासभणौकृपाकरी।।
ऊँ ह्रीं साधु परमेष्ठिने अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जय जय जगतारी शिवहितकारी। अनिवारी वसुकर्म हो। मम अजर सुनीजे ढील न कीजे। शिवसुख दीजे दया करो।।
इत्याशीर्वादः।
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