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श्रीफल लोंग बदाम सुपारी, खारक पिस्ता जानो। और अनेक भले फल करले, आयों अति हरषानो।। नीके पात्र धार के तन मन, भाव भक्ति सब लाई। पूजों सम्यक्चारित मन वच, काय अंग सब नाई।। ओं ह्रीं श्री सम्यक्चारित्राय फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
जल चन्दन अक्षतसुपहुप चरु, दीप धूप फल प्यारे। मिला सर्व को अध्य बनायो, सुन्दर पात्र पसारे।। अपने कर ले करो आरती, नानाविध गुण गाई। पूजों सम्यक्चारित मन वच, काय अंग सब नाई।। ओं ह्रीं श्री सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
प्रत्येकाध्य (चाल जोगीरासा) जिन आज्ञाजुत मुनि वच बोले, सुन सब जिय सुख पावें। हिंसावचन नहीं ऋषि भावं, करुणा अति मन ल्यावें।।
शुद्ध अहिंसा व्रत तब होवे, वच अपने वश राखें।
या जुत सम्यक्चारित सोई, पूजों व्रत अभिलाखे।। ओं ह्रीं वचनाहिंसामहाव्रतसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
मन से हिंसाभाव निवारे, करुणाजुत मन धारी। महावरत तब होय अहिंसा, मन राखें हितकारी।। मुनि किरपानिधि सबजगबंधू, मन तें दोष न भाखें।
या जुत सम्यक्चारित पूजों, करके व्रत अभिलाखे।। ओं ह्रीं मनोहिंसारहिताहिंसामहाव्रतसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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