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तिल मसा भोंरी गांठ रेखा, पांव कर में जोय है। तिस निमित्तज्ञानसुसकल जानें, शुभाशुभ जो होय है।। यह ज्ञान व्यंजन निमितनी को, शुभाशुभ निर्धार जी | मैं जजों यह श्रुतज्ञान सम्यक, अध्य मन वच काय जी।। ओं ह्रीं श्रीसम्यग्व्यंजननिमित्तश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
तन वृषभ स्वस्तिक कलश वज्र, सुमच्छ इन आदिक सही। सब जोय लक्षण देखि इनको, शुभाशुभ भाषे यही ।। यह ज्ञान लक्षण निमित आछो, भले फल को दाय है।
मैं जजों यह श्रुतज्ञान सम्यक, अरघ ले सुख पाय है। ओं ह्रीं श्रीसम्यग्लक्षणनिमित्तश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
तहँ पट सु भूषण शीश के कर, वर पगों के जान जी । तिनको जु काटें मूषाकादिक, भेद तिनको आन जी।। यह भेद शुभ अर अशुभ भाखै, देखि के सुख दुख सहे । यह छिन्न निमित्त सुज्ञान नीको, पूज्यमन वचतन चहे। ओं ह्रीं श्रीसम्यक्छिन्ननिमित्तश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जो लखे सुपना शुभाशुभ को, भेद सुख दुख आन जी। इन आदि अंग अनेक समझे, सकल भेद सु आज जी।। यह ज्ञान निमित्त निमित्तजी को, बड़े अतिशय धार जी । सो जजों सम्यक सहित मनवच, श्रुतज्ञान सु सार जी।। ओं ह्रीं श्रीसम्यक्स्वप्ननिमित्तश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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