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चतुर्निकाय देवकुल में ज्यों, पावे सुरतन भाई।
पूजा ज्ञान तपस्या समकित, निर्जर हेतु बताई।। पुण्डरीक अंग मांहि कह्यो यह, कथन जीव सुखदानो।
या अँग को मैं लेय अध्य कर, पूजों मन वच आनो।। ओं ह्रीं श्रीमहापुण्डरीकप्रकीर्णकांगश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
किस तप ध्यान थकी मुनि उपजे, अहमिन्दर पद पाई। किस तपते वा कौन ध्यानतें, इन्द्रादिक हो भाई।।
इत्यादिक विधि जामें गाई, पुण्डरीक सो जानो।
या अँग को मैं लेय अध्य कर, पूजों मन वच आनो।। ओं ह्रीं श्रीमहापुण्डरीकप्रकीर्णकांगश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जो जो अघ परमाद बढ़ावे, ता नाशन विधि गाई। जो जो पाप मिटे या विधितें, सो सो सकल बताई।। नाम निषिधिका कहातास का, ज्ञानागार बखानों।
या अँग को मैं लेय अध्य कर, पूजों मन वच आनो।। ओं ह्रीं श्रीनिषिद्धिकाप्रकीर्णकांगश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
गीतिका छन्द हैं आठ भेद निमित्त के सो, ज्ञान अद्भुत है सही। तिसज्ञानकी महिमा लखतही, भाव मिथ्या ना रही।। यह भलो ज्ञान अनूप फलदा, होय सम्यक सहित जो।
सो जजों मन काय यह श्रुत, अरघ तें थुति कहक जीं। ओं ह्रीं श्रीअष्टांगनिमित्तश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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