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सो लहें नरक दुख पापभार।
परनारि व्यसन दुठ जीव धार,
यह व्यसन महादुखदाय जोय, इस बिन जजि सुध सम्यक्त्व सोय।।
ओं ह्रीं परनारिव्यसनरहिताय श्रीसम्यग्दर्शनाय अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
चौपाई छन्द
किये दान संक्राती सुजान, होय सुखी जीव नहिं दुःख मान। ऐसो भरम जहां नहिं होय, इस विध जजि सुध समकित सोय।। ओं ह्रीं कुपर्वदानदोषरहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
ग्रह पूजें सुख साता मान, नहिं पूजें दुख-कूप बखान।
ऐसो भरम जहां नहिं होय, इस विध जजि सुध समकित सोय।। ओं ह्रीं चन्द्रसूर्यादिग्रहपूजारहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
पूजें भूमी भूपति थाय, इस विधि मिथ्याभाव उपाय।
ऐसो भरम जहां नहिं होय, इस विध जजि सुध समकित सोय।। ओं ह्रीं भूमिपूजारहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
हिंसामग जो सेव कराय, मिथ्या मन्त्र जन्त्र पुजवाय।
ऐसो भरम जहां नहिं होय, इस विध जजि सुध समकित सोय।। ओं ह्रीं कुधर्मसेवारहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
पर्वत पूजें दीरघ जान, जाके जजे होय हित मान।।
ऐसो भरम जहां नहिं होय, इस विध जजि सुध समकित सोय।। ओं ह्रीं पर्वतादिपूजामलरहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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