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श्रीफल सुपारी लोंग खारक, चोच मोच बदाम जी। इन आदि और अनेक फल ले, महाशुभ के धाम जी।
ले भक्ति कर धर सुभग बासन, आपने कर ले धरी। मैं जजों सम्यकदरश मल बिन, भाव सों थुति उच्चरी।।
ओं ह्रीं श्री सम्यग्दर्शनाय फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
जल गन्ध अक्षत पुष्प चरु ले, दीप धूप सु फल सही।
सब मेल अध्य बनाय नीको, भले पातर मैं लही।। उर भक्ति मन वच काय करके, एक ध्यान सु तैं करी। मैं जजों सम्यकदरश मल बिन, भाव सों थुति उच्चरी।।
ओं ह्रीं श्री सम्यग्दर्शनाय अय॑म् निर्वपामीति स्वाहा।
प्रत्येकाध्य - त्रिभंगी छन्द मम नाना मामा, अतिबल ठामा, धन के धामा सुखदाई। तिन राज समानें, सब जग मानें, वचन प्रमानें सब भाई।। यह 'जाति' सुमद्दा, जानि निषिद्दा, अघ की हद्दा, जान हिये।
याको जु निवारे, सम्यक् सारे, शिवपद धारें, जजि थुति ये।। ओं ह्रीं जातिमदरहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
है बाप हमारा, सुत धन वारा, सब को प्यारा ज्ञानमई।
सुत दारा मेरा, नृप ढिग केरा, काम करेरा, जान सई।। यह ‘कुलमद' जानो अघ को थानो, तज वच मानो, बात हिये। सम्यक् या बिन सो, मोक्ष करन सो, जजि भाव मन सों, भक्ति दिये।। ओं ह्रीं कुलमदरहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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