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जयमाला
प्रकृति प्रदेश रु स्थि ति, और रसोदय बन्ध। गणधर गूंथित से रच्यो भूतवली महाबन्ध।
___ करम बन्ध होता यह आत्मा से कैसे, महाबन्ध में जो बताया है जैसे। इसी जीव का भाव कुछ निमित्त पाकर। बदल जाता पुद्गल करम रूप आकर।1।
परस्पर इसी भांति रद्दोबदल यह, वैभाव शक्ति से होती सदा यह। ___ मिलावट हुई एक की दसरे में, तज असलियत बंध गए पर गुणों में।।2।। तो भी तत्त्व दृष्टि से निज गुण न छोड़ा, यह नाता विलक्षण निमित्त बस ही जोड़ा।
परस्पर बंधे दोनों एक दूसरे से, चले चाल दोनों ही एक दूसरे से।3। पराधीन बनकर नचा नाच किसने, बताओ ये दुखड़े उठाये है किसने।
अरे सच्चिदानन्द! मिटा भूल भाई, महाबन्ध में श्री गुरु ने जो बताई।4। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादमुद्राङ्कितधवलग्रन्थाय अयं निर्वपामीति स्वाहा।
स्तुति
परम दिव्यवानी जु गुणधर ने मानी, नमों लोकमाता श्री जैनवानी।।टेक।। करम मोहिनी हो अखय मोक्षदानी, अनेकान्तधा द्वादशाङ्गी प्रमानी। द्रव्य भाव नो कर्म भंजनि बखानी, नमों लोकमाता श्री जैनवानी।1। परम पण्डिता हो सुनीता पुनीता, कनयखण्डिता निष्कलंका अजीता। __ दुरितहारिणी सुन्दरी भव्यमानी, नमों लोकमाता श्री जैनवानी।2। सुबोधा उधरनी भविक ताप हरनी, मिथ्यात्व बन्धन को हो दृढ़ कतरनी।
दुःखित प्राणियों को सुबुद्धिनिधानी, नमों लोकमाता श्री जैनवानी।3। सुधा सम यह कथनी भवाताप हरनी, विषय मोचनी भव्य जन की सुमरनी।
दुराचार विध्वंसिनी सौख्य खानी, नमों लोकमाता श्री जैनवानी।4।
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