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सम्यक्दीप रत्नत्रय से अब निज परिणति को विकसाऊं। भक्ति भाव से दीप चढ़ाकर महाधवल हृदय लाऊं। आगम वाणी मुक्ति निशानी महापावनी भवि मानी।
पुण्यपापविच्छेदकृपानी, चिदानन्द की रजधानी।। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादमुद्राङ्कितधवलग्रन्थाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
धूपायन में पावक धर कर धूप सुगन्धित प्रज्ज्वलाऊं।
अष्ट करम के नाश हेतु मैं महाधवल हृदय लाऊं। आगम वाणी मुक्ति निशानी महापावनी भवि मानी।
पुण्यपापविच्छेदकृपानी, चिदानन्द की रजधानी।। ऊँ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादमुद्राङ्कितधवलग्रन्थाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
बादाम छुहारी लौंग सुपारी श्रीफल भारी ले आऊं। आवागमन निवारण कारण महाधवल हृदय लाऊं। आगम वाणी मुक्ति निशानी महापावनी भवि मानी।
पुण्यपापविच्छेदकृपानी, चिदानन्द की रजधानी।। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादमुद्राङ्कितधवलग्रन्थाय फलं निर्वपामीति स्वाहा।
करम मरम का भरम न जाने बहुविध जग में भरमाऊं। हरन भ्रमण थिरता पद कारन महाधवल हृदय लाऊं। आगम वाणी मुक्ति निशानी महापावनी भवि मानी।
पुण्यपापविच्छेदकृपानी, चिदानन्द की रजधानी।। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादमुद्राङ्कितधवलग्रन्थाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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