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मुनि होय राज्य विहाय पावे, शाश्वती पद इन दया।।
इनहीं प्रभावै मोक्ष पावे, कर्म नाशे भवकरा। सुख होय सब दुख खोय, सहजहिं स्वर्ग पावे मनहरा।।
ये ज्ञान सम्यक दर्श चारित, तीन ही सुखदाय हैं। इन धार जग में पूज्य पदवी, लहे जिनधुनि गाय है।।
अडिल्ल छन्द रत्नत्रय भव हरे, स्वर्ग शिवदाय जी। रत्नत्रयसम आभूषण, ना दिखलाय जी।। याकी महिमा देख, इन्द्र से पग परे। ये त्रय ज्ञान बढाय, सिद्धथल ले धरें।।
चौपाई छन्द रत्नत्रय जिन भव भरमाय, रत्नत्रय तजि पाप कमाय। अब हम उर वाञ्छा यों थही, मिले हि तू रत्नत्रय सही।।
सोरठा यह रत्नत्रय सार, शरण मिल्यो हमको सही। भवधि तारनहार, तातें मैं पल पल नमों।।
दोहा
रत्नत्रय जग में कहा, मुक्ति महा फलदाय। योग शुद्ध करके नमों, भवतति लेहुँ नसाय।।
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