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________________ (अडिल्ल छन्द) लै वसु द्रव्य विशेष सु मंगल गायके। गीत नृत्य करवाय जु तुर बजायके।। मनमें हर्ष बढ़ाय, अर्घ परण करौं। केतु दोषको मेंट पाप सब परिहरौं। ऊँ ह्रीं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ पाश्वनाथ जिनेन्द्राय महाअर्घ निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला जय मल्लि जिनेसुर सेव करे सुर, पार्शवनाथ जिन चरण नमो। मन वच तन लाई अस्तुति गाई, करौं आरती पाप गमों।। पद्धड़ी छन्द जय जय त्रिभुवन पति देव देव, इन्द्रादिक सुरनर करहि सेव। जय जय निज गुण ज्ञायक महंत, गुण वर्णन करत न लहतअंत।। जय जय परमातम गुण अरिष्ट, भव पद्धति नाशन परम इष्ट। जय जय अष्टादश दोष नाश कर दिन सम लोकालोक भास। जय जय वसु कर्म कलंक छीन, सम्यक्त्व आदिवसु सुगुण लीन। जय जय वसु प्रतिहारज अनूप, वसुनी शुभ भूमिके भये भूप।। जय अदेह तुम देह धार, वर्णादि रहित में रूप सार। जय जय अजरामर पद प्रधान, गुण ज्ञान आलोकालोक मान।। जय जय सुख साता बोधदर्श, निज गुण जुत परगुण नहीं पर्श। जय जय चित्त शुद्ध समुद्र सार, कर जोर नमों हों बार बारं। ॐ ह्रीं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अघं निर्वपामीति स्वाहा। इत्याशीर्वादः। 264
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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